Tuesday, May 19, 2009

गरमी के मौसम में ठण्ड कैसे पड़े..आईये जाने

गर्मियों में बाहर तेज धूप, रूखी गर्म हवाएं चलने और अंदर उमस की वजह से हीट स्ट्रोक, पेट से संबंधित समस्याएं और स्किन की बीमारियां आम हो जाती हैं। एक्सपर्ट्स का मानना है कि लाइफस्टाइल में थोड़ा-सा बदलाव करके और चंद एहतियात बरतकर हीट को आसानी से बीट किया जा सकता है।

लू लगना (हीट स्ट्रोक, सन स्ट्रोक)
गर्मियों में झुलसा देनेवाली धूप और गर्म हवाएं कई बार हीट स्ट्रोक की वजह बन जाती हैं। इस बार रेकॉर्ड तोड़ गर्मी होने से राजधानी लू की चपेट में आ गई है। ऐसे में ज्यादा देर तक बाहर रहना खतरनाक हो सकता है। लू लगने पर शरीर में गर्मी का संतुलन बिगड़ जाता है, शरीर ओवरहीट हो जाता है। इससे शुरू में लगातार पसीना आता है। कई बार शरीर में पानी व नमक की कमी होने पर डी-हाइड्रेशन हो जाता है। पोटैशियम और सोडियम की कमी से मरीज को कमजोरी व घबराहट महसूस होती है। कई बार लूज मोशंस या उलटी होने पर लगातार फ्लुइड न लेने से भी शरीर में पानी और सोडियम की कमी हो जाती है और डी-हाइड्रेशन हो सकता है।

ऐसे होती है समस्या
स्किन जब लगातार गर्म हवा के संपर्क में रहती है तो इसके नीचे नसों में बहने वाला खून तेजी से गर्म होता है। जब बाहर के वातावरण की वजह से अंदर का तापमान बहुत ज्यादा हो जाता है, तब हाइपोथेलेमस ग्रंथि पूरी क्षमता से काम नहीं कर पाती। इससे शरीर का तापमान बढ़ने लगता है। आखिर में दिमाग काम करना बंद कर देता है और मरीज को झटके आते हैं।

लक्षण
बुखार होना, पसीना आना बंद होना, गर्म-सूखी स्किन, सात-आठ घंटे तक पेशाब न आना, बुखार, थकावट, सिर व पेट में दर्द, आंखों में जलन, बार-बार उलटी-दस्त होना, दिल तेजी से धड़कना, अजीबोगरीब बर्ताव, गुस्सा, कन्यूफ्जन, लंबी-लंबी सांस लेना और हालत बिगड़ने पर बेहोशी का अहसास होना। इनमें से कुछ लक्षण दिखाई दें तो फौरन डॉक्टर के पास ले जाना चाहिए। शरीर का टेंपरेचर अगर 104 डिग्री फॉरनहाइट से ज्यादा हो तो समझें हालत गंभीर है।

सावधानियां व बचाव
-घर से बाहर निकलते वक्त पानी की बोतल साथ रखें और बीच-बीच में पानी पीते रहें।
- खाली पेट घर से न निकलें।
- अगर कमरे में एसी नहीं चल रहा हो तो खिड़कियां-दरवाजे पूरी तरह बंद न रखें, क्योंकि हवा पास न होने की स्थिति में भी हीट स्ट्रोक हो सकता है।
- धूप से आकर सादा पानी पीने के बजाय नीबू-पानी, शिकंजी, नारियल पानी, लस्सी, छाछ, आम पना, सत्तू, ठंडाई, खस का शर्बत या जलजीरा पीएं।
-लूज मोशंस होने पर सादा पानी के बजाय नीबू-नमक चीनी या ओआरएस का घोल पिलाते रहें।

खानपान का रखें ख्याल
- गर्मियों में जहां तक हो सके लो-कैलरी डाइट लें और जितनी भूख हो, उसका आधा खाएं।
- सड़क किनारे खुली रखीं चीजें न खाएं।
- कम तली-भुनी और हल्की चीजें खाएं, क्योंकि इस मौसम में खाना पचने में दिक्कत होती है।
- बासी भोजन न खाएं।
- पहले से बनाया खाना फ्रिज में ही रखें और उसे उसी दिन इस्तेमाल करें।
- ज्यादा-से-ज्यादा दही खाएं। यह पेट को ठंडा रखने के साथ स्किन के लिए भी फायदेमंद है।
- आम पना, नीबू पानी, छाछ, नारियल पानी आदि लगातार लें।
- आलू, गोभी जैसी गरिष्ठ सब्जियों के बजाय तोरी, भिंडी, लौकी आदि मौसमी सब्जियां खाएं।
- तरबूज, खरबूजा, खीरा, ककड़ी, आम, अंगूर जैसे मौसमी फल खाएं।
- फल-सलाद दो घंटे से ज्यादा देर कटे हों तो न खाएं।
- बेल या गुड़ का शरबत काफी फायदेमंद होता है।
- गर्मी में कच्चा प्याज खाना भी फायदेमंद होता है।

सफर के दौरान बरतें एहतियात

- बिना एसी की बस या ट्रेन में सफर करते वक्त दोपहर में खिड़कियां बंद कर लें।
- लगातार धूप में चलना है तो सिर को ढकते हुए कान-नाक और मुंह पर भी सूती कपड़ा बांध लें, इससे शरीर में सीधे गर्म हवा प्रवेश नहीं करेगी।
- छाता लेकर चलें। सिर पर कैप हो और आंखों पर धूप का चश्मा।
- सुस्ताने के लिए अगर छांव में खड़े हैं तो सीधे गर्म हवा के संपर्क में बचें।
- एसी से निकलकर तुरंत धूप में न जाएं। पांच मिनट तक बिना एसी वाली छायादार जगह पर रुकें और फिर धूप में जाएं, क्योंकि तुरंत ठंडी से गर्म जगह पर जाने से शरीर का तापमान एडजस्ट नहीं कर पाता है और सर्दी-जुकाम हो सकता है।
- कार से उतरने से 5 मिनट पहले एसी बंद कर दें।
- सफर में आपका खानपान जितना तरल होगा, उतना ही अच्छा है।

फर्स्ट-एड
डॉक्टर के पास पहुंचने से पहले ही मरीज की देखभाल शुरू कर दें क्योंकि पहले दो घंटे इलाज के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण होते हैं :

- लू लगने पर मरीज को ठंडी या छायादार जगह पर ले जाएं।
- उसे सीधे लिटाएं और सिर के नीचे पतला तकिया रख दें।
- शरीर का टेंपरेचर नीचे लाने की कोशिश करें।
- गले, छाती और कमर के कपड़े ढीले कर दें।
-पंखा चला दें या हाथ से हवा करें।
- भीड़ को हटाएं, हवा आने दें।
- शरीर पर तब तक ठंडे पानी के छींटे मारें या स्पंज करें, जब तक शरीर का तापमान कुछ कम न हो जाए।
- जितनी जल्दी हो सके मरीज को डॉक्टर के पास ले जाएं, क्योंकि शरीर के तापमान के हिसाब से उसे आईसीयू में रखने की जरूरत हो सकती है।

पेट की बीमारियां

गर्मियों में बासी या खराब चीजें खाने और गंदा पानी पीने से पेट में इन्फेक्शन की समस्या आम है। इससे डायरिया, हैजा व टायफायड जैसी बीमारियों के मामले बढ़ जाते हैं। इन समस्याओं की शुरुआत उलटी-दस्त (डायरिया) से होती है। अगर इसी स्तर पर बीमारी को कंट्रोल किया जाए तो समस्या को गंभीर होने से रोका जा सकता है।

दो तरह का होता है डायरिया
पानी में वायरस और बैक्टीरिया पैरासाइट बढ़ने से शरीर लिक्विड चीजों को ऑब्जर्व नहीं कर पाता। इस स्थिति को वॉटरी डायरिया कहते हैं। उबालने पर बैक्टीरिया मर जाते हैं, इसलिए पानी उबालकर पीने से इस समस्या से बचा जा सकता है।

प्रदूषण की वजह से खाने की चीजों में टॉक्सिन बढ़ने से इन्फेक्टिव डायरिया होता है। टॉक्सिन उबालने से भी नष्ट नहीं होते और ये आमतौर पर मिल्क प्रॉडक्ट और नॉन-वेज में पाए जाते हैं। बचाव के लिए ताजे दूध और मक्खन का ही इस्तेमाल करें और नॉन-वेज खाने से बचें।

बार-बार उलटी-दस्त, पूरे शरीर में दर्द, कमजोरी व आलस, बुखार व सिरदर्द होना जैसे लक्षणों में से कुछ हो सकते हैं।

इलाज
उलटी-दस्त होने पर ओआरएस का घोल लगातार पीएं, क्योंकि पानी व ग्लूकोज की कमी से मरीज डी-हाइड्रेशन का शिकार हो जाता है। इन्फेक्शन बढ़ने से मरीज को हैजा हो सकता है। ब्लड प्रेशर कम होने से मरीज की हालत गंभीर हो सकती है, इसलिए जितनी जल्दी हो सके, डॉक्टर के पास जाएं।

-साफ-सफाई का पूरा ध्यान रखें।
-खाने से पहले और बाद में साबुन से हाथ धोएं।
-हमेशा घर की बनी ताजा चीजें खाएं।
-हैंडपंप या रेहड़ी का पानी न पीएं।
-पीने के पानी में क्लोरीन की गोली मिलाएं और पानी उबालकर पीएं।
-खाने की चीजों को अच्छी तरह पकाएं।
-खुले में बिकनेवाले कटे फल, सलाद, गोलगप्पे, चाट, गन्ने का रस व मैंगो शेक आदि का इस्तेमाल न करें।
-गर्मियों में रोज 10 से 12 लिक्विड पीएं। इसमें पानी, जूस, रस, नारियल पानी आदि शामिल हैं।
-फ्रूट जूस भी बाहर तभी पीएं, जब सफाई की गारंटी हो।

घेर सकती हैं आंखों की भी बीमारियां
गर्मियों के मौसम में आंखों की समस्याएं भी हो जाती हैं। बचाव के लिए साफ-सफाई का ध्यान रखना सबसे जरूरी है। समस्या होने पर आंखों को ताजे पानी या बोरिक एसिड से दिन में तीन बार धोएं। इसके लिए कॉटन का इस्तेमाल करें। आंखों को मसलें नहीं, क्योंकि इससे रेटिना में जख्म हो सकता है। खुद इलाज करने के बजाय डॉक्टर को दिखाना ज्यादा बेहतर है।

कंजंक्टिवाइटिस तीन तरह का होता है : वायरल, एलर्जिक और बैक्टीरियल।

लक्षणों से पहचानें

वायरल कंजंक्टिवाइटिस: आंख से पानी आना, खुजली व आंख का लाल होना। आमतौर पर यह इन्फेक्शन पहले एक आंख में होता है, मगर आसानी से दूसरी आंख में भी फैल सकता है।

एलर्जिक कंजंक्टिवाइटिस: आंखों से लगातार पानी आना, खुजली, जलन और सूजन जैसे लक्षण। यह आमतौर पर दोनों आंखों को प्रभावित करता है।

बैक्टीरियल कंजंक्टिवाइटिस: इसमें बाकी लक्षणों के अलावा आंखों से गाढ़ा पदार्थ निकलता रहता है। इसकी वजह से कई बार सोकर उठने पर पलकें एक साथ चिपक जाती हैं।

वायरल कंजंक्टिवाइटिस का कोई इलाज नहीं किया जाता है क्योंकि आमतौर पर एक हफ्ते में यह अपने आप ठीक हो जाता है। इसमें बोरिक एसिड से आंखों को धोना ठीक रहता है। एलर्जिक कंजंक्टिवाइटिस में नॉन-स्टेरॉयडल एंटी-इन्फ्लेमेट्री मेडिकेशन की जरूरत होती है और बैक्टीरियल कंजंक्टिवाइटिस में बैक्टीरियल आई ड्रॉप इस्तेमाल करने को कहा जाता है।

बचाव
-दरवाजों के हैंडल, टेलिफोन के रिसीवर आदि इन्फेक्टिड न हों, इसका ख्याल रखें।
-चेहरे और आंखों पर बार-बार हाथ लगाने से बचें।
-हाथों को बार-बार साबुन से साफ करें।
-अपना तौलिया, रुमाल और चश्मा आदि किसी के साथ शेयर न करें।

स्किन की समस्याएं

गर्मियों में फंगल इन्फेक्शन, घमौरियां और सनबर्न जैसी दिक्कतें आम हैं। इनसे बचाव या इलाज के नाम पर बिना स्पेशलिस्ट की सलाह के क्रीम आदि न लगाएं, क्योंकि इससे स्किन का रंग काला पड़ सकता है।

वजह
गर्मी के मौसम में शरीर से पसीना अधिक निकलता है। इसके चलते वातावरण में मौजूद धूल मिट्टी के कण शरीर के विभिन्न हिस्सों में चिपक जाते हैं और सफाई न करने से इससे इन्फेक्शन व घमौरियां आदि हो जाती हैं। रगड़ पड़ने से कई बार इन्फेक्शन स्किन कैंसर का रूप ले लेता है। इस मौसम में हाथ-पैरों की उंगलियों के बीच और बगलों में फंगल इन्फेक्शन भी आम है, जिसका कारण है लगातार नमी रहने और सफाई न होने के कारण बैक्टीरिया का पनपना। साथ ही देर तक तेज धूप के सीधे संपर्क आने से त्वचा का रंग सांवला पड़ने, झुलसने या रैशेज होने जैसी समस्याएं आम होती हैं। वैसे, इस तरह की समस्या गोरे रंगवालों को ज्यादा होती है।

बचाव
- घमौरियों और फंगल इन्फेक्शन आदि से बचने के लिए आजकल दिन में कम से कम दो बार अच्छी तरह से नहाएं। अगर साबुन से एलर्जी हो या त्वचा रूखी होने का डर हो तो बेसन का इस्तेमाल करें।
- हाथों-पैरों की उंगलियों के बीच और बगलों की साफ-सफाई का पूरा ध्यान रखें, क्योंकि नमी के कारण यहां फंगल इन्फेक्शन हो सकता है।
-धूप में निकलते वक्त शरीर को ढक कर रखनेवाले कपड़े पहनें।
- कॉटन के सफेद या हल्के रंग वाले मुलायम कपड़ों को ही प्राथमिकता दें, क्योंकि कॉटन पसीना सोखता है और इससे त्वचा पर रगड़ नहीं पड़ती।
- धूप में जाना हो तो शरीर के खुले हिस्सों पर सनस्क्रीन क्रीम लगाएं। इसका असर तीन-चार घंटे तक ही रहता है, इसलिए हर तीन-चार घंटे में स्किन को साफ कर सनस्क्रीन क्रीम लगाएं।
- कितने एसपीएफ का सनस्क्रीन लगाना, यह स्किन की जरूरत के हिसाब से किसी एक्सपर्ट की मदद से तय करें।
- छतरी लेकर धूप में निकलें और स्किन में नमी बरकरार रखने के लिए खूब पानी और रसदार फल खाएं।

टैनिंग और सनबर्न सिर्फ सनस्क्रीन क्रीम लगाने से ठीक नहीं होते। इसके लिए निम्न घरेलू इलाज भी किए जा सकते हैं :
- स्किन पर मुल्तानी मिट्टी या लैक्टोकैलामाइन के लेप से समस्या काफी हद तक दूर हो सकती है।
- विटामिन-सी युक्त खाने की चीजों जैसे नीबू, टमाटर, संतरा, अमरूद आदि खाने से स्किन के कई इन्फेक्शन से बचा जा सकता है।
- एलोवेरा का लेप लगाने से स्किन को ठंडक मिलती है।
- दही में नीबू का रस और हल्दी मिलाकर लगाने से टैनिंग कम होती है।
- बेसन में हल्दी, नीबू, दही और गुलाब जल मिलाकर उबटन की तरह इस्तेमाल करें।
- खीरा, पपीता या केला मसलकर स्किन पर लगाना फायदेमंद होता है।
- आंखों की जलन कम करने के लिए खीरा काटकर आंखों के ऊपर रखें।

कुछ भ्रम और सचाई
पैरासिटोमोल- यह हर मौसम में बुखार कम करने की असरदार दवा नहीं है। गर्मियों में बुखार होने पर यह कारगर नहीं होती। पैरासिटामोल पसीने के ग्लैंड्स को खोलने का काम करती है और गर्मी में शरीर यह काम खुद-ब-खुद कर लेता है। इसलिए बुखार की दवा डॉक्टर की सलाह से ही लें।

पीलापन- गर्मी के दिनों में किडनी पानी की ज्यादा-से-ज्यादा बचत करती है, जिससे यूरीन गाढ़ा होता है। इसके पीलेपन को आमतौर पर लोग पीलिया का संकेत मान लेते हैं, जबकि यह सामान्य बात है। हां, पीलापन यह जरूर बताता है कि आपको पानी ज्यादा पीने की जरूरत है।

पट्टियां रखना- शरीर के बहुत ज्यादा तपने पर पानी की पट्टियां रखने की सलाह दी जाती है लेकिन यह तब तक फायदेमंद नहीं है, जब तक आप शरीर पर रखकर पट्टी के गर्म होते ही इन्हें हटा नहीं लेते। पट्टियां हटाने के बाद ही पानी शरीर की गर्मी लेकर भाप बनकर उड़ता है।

तेज गर्मी में नहाना- कहते हैं कि तेज धूप से आने के बाद नहाने से लू लग जाती है। यह गलत है। नहाने से शरीर का तापमान बैलेंस हो जाता है। हालांकि बहुत ठंडे पानी से नहाने से बचना चाहिए।

खाने की तासीर- खाने की कुछ चीजों की तासीर गर्म और कुछ की ठंडी बताई जाती है। वैज्ञानिक दृष्टि से ऐसा नहीं होता। हर चीज मौसम के अनुरूप काम करती है। जिस मौसम में जो चीज ज्यादा मिलती है, वह फायदेमंद है। उदाहरण के तौर पर मौसमी सब्जियां और फल आदि।

स्किन की बीमारी- कहते हैं खट्टा-मीठा साथ खाने से स्किन की बीमारियां हो जाती हैं, जो गलत है। दोनों चीजें साथ खाने में कोई बुराई नहीं है।

सर्जरी- आंखों की सर्जरी गर्मी में नहीं करानी चाहिए, यह भ्रांति है। आंखों की सर्जरी किसी भी मौसम में करा सकते हैं क्योंकि हॉस्पिटल और थिएटर सही तापमान के आधार पर डिजाइन किए होते हैं।

प्राणायाम व योगासन भी दिलाते हैं राहत

गर्मियों में कुछ योगासन और प्राणायाम काफी फायदेमंद हो सकते हैं। इनमें शीतली प्राणायाम, शवासन और सर्वांगासन महत्वपूर्ण हैं।

शीतली प्राणायाम : पालथी मारकर आराम से बैठें और जीभ को बांसुरी के आकर में मोड़कर बाहर की तरफ निकालें। धीरे-धीरे बाहरी हिस्से के ऊपर से हवा को खींचते हुए फेफड़ों तक सांस भरकर मुंह को बंद कर लें। थोड़ी देर सांस को रोकें, फिर इसे नाक से बाहर फेंकें। जब भी गर्मी का अहसास हो या तेज प्यास लगी हो और पानी न मिले तो यह प्राणायाम करें। पांच से सात बार इस प्रक्रिया को दोहराते ही आराम मिल जाएगा।

ध्यान रखें: शीतली प्राणायाम करने से उन लोगों को परहेज करना चाहिए जिन्हें सर्दी-जुकाम, खांसी या अस्थमा की समस्या है।
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