Monday, October 25, 2010

एक ऐसा सवाल जिसका शायद किसी से पास जवाब नहीं: क्या आपके पास है?

जी हाँ , आज आपके सामी एक ऐसा ही सवाल रखना चाहता हूँ।
हम सब अपनी रोजमर्रा की ज़िन्दगी मैं बस मैं सफ़र करते है । पर आज मैं २ घंटे तक एक बस का इंतज़ार करता रहा। बस स्टाप पर बैठे बैठे मैने देखा कि उतारने वाली सवारियों मैं जो महिलाएं थीं वो सभी उतरते ही अपना पीठ बस की दिशा गति से बिलकुल उलटी दिशा मैं करते हुए उतर रही थीं। एक नहीं बल्कि प्रत्येक महिला ऐसा कर रही थी।

सवाल सिर्फ इतना सा है कि महिलाएं बस से उल्टे क्यूँ उतरती हैं?

क्या है किसी के पास इसका जवाब ?

Thursday, October 14, 2010

मैं आम आदमी हूँ , चुप नहीं बैठूँगा.

लेखन ही मेरी आवाज है. मैं खुद को ऐसे ही अभिव्यक्त करता हूँ. कुछ भी अजीब और असहज घटता है मेरे आस-पास तो मैं चुप नहीं रह पता. कोई ख़ुशी उत्पन्न होती है मेरे आस-पास तो मैं उसे सब लोगों के साथ बांटना चाहता हूँ. याफिर समाज विरोधी लोक-अहित करने वालों को देखता हूँ तो असहज होकर कुछ करने का मन करता है. तो फिर लिखता हूँ. अपने लिए देश के लिए.

खेलों मैं जिस प्रकार गंदे खेल खेले गए यह जग ज़ाहिर है. अब जबकि राष्ट्रमंडल खेलों का भव्य समापन हो चूका है तो अंतर्मन से आवाज़ आती है कि क्या आयोजन से जुडे लोगों के घिनोने खेल का भी समापन होगा?? क्या जिम्मेदारियां तय की जायेंगी, जो लोग दोषी पाए जायेंगे क्या उनपर कोई कानूनी कार्रवाई हो पायेगी. या धन बल और राजबाल के सहारे या फिर अपने रसूखों के बल पर दोषी अधिकारी बच निकालने मैं सफल हो जायेंगे. क्या जवाबदेही तय की जा पायेगी?

कहीं ऐसा तो नहीं होगा कि बारात की विदाई के साथ ही सब कुछ विदा कर दिया जायेगा. सब कुछ भुला दिया जायेगा... फिर से दोहराने के लिए. हम एक और मौका तो नहीं देंगे?

आखिर कौन देगा इन प्रश्नों के उत्तर? जनता? सभ्य समाज? नेतागण? सरकारी तंत्र? या राजनैतिक दल. हम किससे उम्मीद कर सकते हैं? किसी से नहीं क्यूंकि सभी अपनी दबी पूंछ निकालने मैं लगे हैं. क्यूंकि इस हमाम मैं सभी नंगे हैं. कोई किसी पर कीचड नहीं उछाल सकता. सबको सबकी पोल पट्टी मालूम हैं. कोई भी किसी के खिलाफ अपना मूंह नहीं खोलेगा... सच तो यही है.पर मुझे पीड़ा होती है. समाज की खून पसीने कि गढ़ी कमी का मामला है भाई. मैं चुप नहीं बैठूँगा. मैं कुछ नहीं कर सकता जानता हूँ. एक आम आदमी आवाज उठाने के सिवाय कर भी क्या सकता है? उसकी आवाज़ तो होती ही है दबा दिए जाने के लिए. पर मैं चुप नहीं बैठने वाला. मैं लिखूंगा. लिखता रहूँगा.

अब शुरू होंगे खेल, आरोप -प्रत्यारोप का खेल, राजनैतिक खींचतान

खेलों का शुभ समापन, और घोटाले छिपाने का खेल शुरू... हो गया. भारत की साख बच गयी है. सब लोग खुश हैं. सोने के तमगों की गिनती भी बढ़ गयी है. खेलों मैं कई नए कीर्तिमान बने, कई पूर्व कीर्तिमान टूटे हैं. खेल शुरू हनी से पहले भी बहुत से कीर्तिमान हमारे आयोजन कर्ताओं ने बनाए. वो सारे कीर्तिमान ऐसे हैं जो सिर्फ वे ही बना सकते थे.आयोजन से जुडे सब लोग राहत की सांस ले रहे हैं. अच्छी बात है, पर इससे भी अच्छी बात तब होगी जब इनसब लोगों के काले कारनामे भी उजागर होंगे. और दोषी लोगों को दण्डित करने की कार्रवाही ईमानदारी से होगी. जिसकी आशा मुझे और इस देश कि जनता को कतई नहीं है.

असल खेल तो अब शुरू होंगे. लुका छिपी के खेल, आरोप -प्रत्यारोप का खेल, राजनैतिक खींचतान का खेल. कानून को तोडने मरोड़ने का खेल, और भी न जाने कौन कौन से खेल ईजाद कर लिए जायेंगे. जो लोग इन खेलों मैं जीतेंगे वो सम्मानित कीये जायेंगे या नहीं, उन्हें भी कोई तमगा मिलेगा या नहीं, उनका नाम भी खर्ब्रों मैं होगा या नहीं, यह सब तो समय के गर्भ मैं ही छिपा है और रहेगा.

सफल आयोजन की ख़ुशी के तले कहीं उन सबके काले कारनामे भी हमेश की तरह दब कर ना रह जाएँ. हमें और सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए. नहीं तो भ्रष्टाचार के माहिर लोगों को बल मिलेगा और माहौल बद से बदतर होता जायेगा.

मेरी भारत के देशवासियों से अपील है कि इस मामले को इस तरह से दबाया न जाने दें. यही इस समय राष्ट्र की सबसे बड़ी मांग है. जय हिंद. जय भारत.
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