Tuesday, February 23, 2010
क्या भारतीय हाकी टीम को बैसाखियो की जरूरत है?
आज कल हम सब टी.वी पर कुछ विग्यापन देख रहे है जिसमे हाकी वर्ल्ड कप को समर्थन करते हुये कुछ खिलाडियो को दिखाया जा रहा है. यह देख कर खुशी हुई कि हमारी लडखडाती हुई हाकी टीम को प्रोत्साहित करने मे जो अनदेखी लम्बे समय से हो रही थी अब उसकी ओर कम से कम मीडिया का ध्यान जा तो रहा है. मगर एक बात मेरे गले नही उतर रही और शायद मेरे जैसे कितने ही लोग होगे जिनको यह बात असमंजस मे डालती होगी कि भारतीय हाकी के खेल को जो लोग बढावा देने की बात करते दिख रहे है वो फिल्मी सितारे है जैसे प्रियांका चोपडा जी, अभिषेक बच्चन जी है और तो और क्रिकेट जगत के धुरन्धर खिलाडी जैसे वीरेन्द्र सहवाग भी हाकी जैसी लडखडाती टीम का साहस बढाते दिखाई दे रहे है. इतना सारा प्रोत्साहन देखकर अच्छा लगता है. मगर फिर एक बात मेरे मन को शंका से भर देती है कि ये प्रोत्साहन कार्यक्रम कही हाकी को बैसाखी के रूप मे तो प्राप्त नही हो रहे?? क्योकि इन चेहरो मे किसी हाकी खिलाडी का चेहरा तो दिखाई ही नही दे रहा !!! भारत की भोली जनता तो उनके हाकी खिलाडियो को देखने के लिये मैच की टिकट ही लेनी होगी क्या ??? कितना अच्छा होता अगर इन प्रोत्साहन कार्यक्र्मो मे किसी हाकी खिलाडी को भी फिल्माया गया होता. क्योकि ये कार्यक्र्म भारतीय हाकी को बैसाखी की तरह दिये गये है कि जैसे भारतीय हाकी खिलाडियो का कोई अस्तित्व ही नही है या फिर उनमे आत्मबल की कभी है??एक भारतीय होने के नाते मेरा यह विचार है कि हाकी टीम के खिलाडियो को भी मीडिया जगत मौका दे, समर्थन दे उन्हे सीधे तौर पर भारतीय जन-मानस तक पहुचाये . तभी तो हम सीधे सीधे अपने खिलाडियो से जुड पायेगे. आपका क्या कहना है???
एक बात
मै सोया नही था मगर दोस्तो,
पडौसी का रोना जगा-सा गया.
निवाला भी लीला नही था अभी-
कि बच्चौ का रोना हिला -सा गया.
तडपते जो देखा है मैने उसे-
जख्मो को अपने भुला-सा गया.
चुप्पी जो देखी थी पसरी हुई-
वो लम्हा तो मुझको रुला-सा गय.
पडौसी का रोना जगा-सा गया.
निवाला भी लीला नही था अभी-
कि बच्चौ का रोना हिला -सा गया.
तडपते जो देखा है मैने उसे-
जख्मो को अपने भुला-सा गया.
चुप्पी जो देखी थी पसरी हुई-
वो लम्हा तो मुझको रुला-सा गय.
Sunday, February 14, 2010
चंद सवाल प्यार पर
क्यूँ ज़रूरत है प्रेम बताने की,
क्यूँ ज़रूरत है प्रेम जताने की,
क्यूँ ज़रूरत है एक दिन के बहाने की,
क्या ज़रूरत है किसी को आज़्माने की,
क्यूँ ज़रूरत है प्रेम की दबाने की,
क्यूँ यही आदत है ज़माने की,
क्या ज़रूरत है 14 फरवरी मनाने की,
हमें तो सदियों से आदत है प्यारबरसाने की।
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