Thursday, September 23, 2010

मैं हत्या करना चाहता हूँ.

मैं हत्या करना चाहता हूँ.

मैं पहले तो आत्महत्या करने जा रहा था. फिर सोचा कि बेकार मैं मर कर क्या करूंगा. क्यूँ न उस बात को ही चरितार्थ कर दूं कि " हम तो डूबेंगे सनम तुमको भी ले डूबेंगे. सोचा इतने भ्रष्ट लोग हैं, भ्रष्ट नेतागण हैं, भ्रष्ट अफसर लोग हैं, और नए नए भ्रष्ट हैं जिन्होंने खेलों मैं खेल खेला है. क्यूँ न इन सबकी हत्या कर दी जाए.

सच कहूं तो मुझे बहुत गुस्सा है कि इतने लोग भ्रष्ट हैं कि रोटी तक खाना मुहाल हो गया है. पर मैं हूँ तो आम आदमी ही. तो कोई विचार नहीं बना प् रहा हूँ कि इन सब कलंकित लोगों के कैसे मारूं. क्या पाठक गण मेरी इतनी सहायता कर सकते हैं कि देख को साफ़ सुथरा करने के लिए चरों तरफ फ़ैल गयी गंदगी को मैं कैसे हटाऊं. खरपतवार कि तरह उग आये ये भ्रष्ट लोग देख को खोखला कर रहे हैं. एक किसान ही जानता है कि इससे कैसे निबटा जायेगा. और भारत एक कृषि प्रधान देश है. और हम पता है कि इस मुश्किल का क्या हल है.

मार डालो सबको जो भी देश के प्रति बेईमान हो. जो भी अपने कर्तव्य पालन मैं पक्का न हो चाहे वो मेरा बाप ही क्यों न हो. बस एक ही समाधान. ऐसे ज़हरीले पेड़ को उखाड़ फेंको. जय हिंद. जय भारत. जय धर्मनिरपेक्ष भारत. हम एक हैं हम धर्म के नाम पर नहीं टूटने वाले.

जमना मैया कि कहानी, जमना मैया कि जुबानी,

जमना मैया कि कहानी, जमना मैया कि जुबानी,
कभी मरते थे बे-पानी अब है जगह-जगह पर पानी,

करते रहे सभी मन मानी, किसी की कही कभी न मानी,
अब फिर गया है सब पर पानी,
कचरा डाला, कूड़ा डाला, भर भर डाला गन्दा पानी,
करदिया सारा गन्दा पानी, प्रकृति से जो की बेईमानी,
पड़ गया सब पर अब है पानी.

छाती पर हैं खेल बनाये, खेलों मैं भी खेल बनाये.
अब सबका खेल बिगाड़े पानी, हो गया सबकुछ पानी पानी,
पैसा बेह्गाया जैसे पानी, फिर भी देखो वही कहानी,
चारों ओर है पानी पानी.

जमना मैया कि कहानी, जमना मैया कि जुबानी,
कभी मरते थे बे-पानी अब है जगह-जगह पर पानी,
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