Sunday, February 20, 2011

भैया सब गोल-माल है! देश का बुरा हाल है!!

जैसा कि सभी जानते हैं, सभी कम्पनियाँ अपने विज्ञापनों के लिये कुछ नामी-गिरामी व्यक्तियों को ब्राण्ड एम्बेसेडर बनाती हैं ताकि उनके उत्पाद खूब बिकें और उनकी बाज़ार में एक विशिष्ट पहचान बने…। मार्केटिंग गुरुओं की मानें, तो एक होती है Positive ब्राण्डिंग और एक होती है Negative ब्राण्डिंग… पॉजिटिव ब्राण्डिंग में विज्ञापनकर्ता उस हस्ती को लेकर अपने उत्पाद की खूबियाँ पेश करता है, जबकि निगेटिव ब्राण्डिंग में कम्पनी सिर्फ़ उत्पाद की खूबियाँ गिनाती है लेकिन बैकग्राउण्ड में किसी नकारात्मक छवि को रखकर… जैसे कि “बिनानी सीमेण्ट भूकम्परोधी मकान बनाने के काम आयेगा”, इसमें बिनानी सीमेण्ट उत्पाद है, लेकिन भूकम्प विलेन है जिसके जरिये डराकर ग्राहकों को बिनानी सीमेण्ट खरीदने को कहा गया है… दाँतों की सड़न “डराऊ विलेन” है तो नमक वाला कोलगेट उसका उत्पाद है… ऐसे कई विज्ञापन हैं जिनमें निगेटिव ब्राण्डिंग कैम्पेन किया जाता है…


जबसे पिछले कुछ दिनों से दिग्विजयसिंह ने हिन्दुओं एवं संघ के खिलाफ़ बयानबाजी शुरु की है, तभी से कुछ कम्पनियों की बाँछें खिल गई हैं, उन्हें बैठे-बिठाये, फ़ोकट में एक निगेटिव ब्राण्ड मिल गया है…। हाल ही में सेंटर-फ़्रेश कम्पनी के सीईओ चम्पकलाल शाह ने कहा कि जल्दी ही हम इस च्युइंगगम का नया ब्राण्ड बाज़ार में उतारेंगे जिसकी पंचलाइन होगी… “सेण्टर-फ़्रेश खाओ, मुँह की दुर्गन्ध भगाओ…” पत्रकारों द्वारा इसका कारण विस्तार से बताने की मांग पर शाह ने कहा कि “जब भी दिग्विजय सिंह मुँह खोलते हैं, हिन्दुओं को तीखी बदबू का सामना करना पड़ता है…” अतः हमारे हिन्दुस्तान के बड़े हिन्दू बाज़ार को देखते हुए इस च्युइंगगम के सफ़ल होने के बहुतेरे आसार हैं। सेण्टर फ़्रेश कम्पनी की विज्ञापन एजेंसी चोरगेट-खामोलिव कम्पनी का कहना है कि “इस पंचलाइन के जरिये ही हम मुँह से बदबू खत्म करने वाले प्रोडक्ट के मार्केट पर कब्जा कर लेंगे… चूंकि दिग्गी “राजा” भी रहे हैं इसलिये वे कोई पैसा तो लेंगे नहीं… हम उनका चित्र भी विज्ञापन में नहीं दिखाएंगे… हिन्दुओं के लिये सिर्फ़ उनका नाम ही काफ़ी है। मुँह की दुर्गन्ध रोकने वाले इस धांसू विज्ञापन पर दिग्विजयसिंह का कॉपीराइट नहीं करवाया जायेगा, ताकि भविष्य में यदि राहुल गाँधी भी चाहें तो इस विज्ञापन में लिये जा सकते हैं…”। वैसे विश्वस्त सूत्र यह भी बताते हैं कि राहुल गाँधी को ब्राण्ड एम्बेसेडर बनाने के लिये भी दो कम्पनियों में खींचतान हो रही है, पहली है “बोर्नविटा” (बच्चों के शारीरिक व मानसिक विकास हेतु प्रतिबद्ध) एवं मेन्टोस (दिमाग की बत्ती जला दे…), इस मामले में बोर्नविटा कम्पनी का दावा अधिक मजबूत नज़र आता है, क्योंकि उन्होंने 40 वर्ष के ऐसे अधेड़ों के लिये नया प्रोडक्ट लांच किया है जिनका मानसिक विकास ठीक से नहीं हो पाया है।


बहरहाल, सेण्टर फ़्रेश कम्पनी की इन योजनाओं का खुलासा होने के बाद एक कार परफ़्यूम कम्पनी “एम्बीप्योर” ने भी दिग्विजय सिंह को अपना ब्राण्ड एम्बेसेडर घोषित कर दिया है। कम्पनी के मैनेजिंग डायरेक्टर सुगन्धीलाल शर्मा ने कल एक पत्रकार वार्ता में बताया कि हम चोरगेट-खामोलिव के इस विज्ञापन से बहुत प्रभावित हैं और हमने आपस में टाई-अप करने का फ़ैसला किया है। चूंकि दोनों कम्पनियों के उत्पाद अलग-अलग हैं इसलिये हमारा कोई व्यावसायिक टकराव नहीं होगा, इस पर सेंटर फ़्रेश कम्पनी के चम्पकलाल शाह ने अपनी मुहर लगा दी है…। भविष्य में जब भी दिग्विजय सिंह कहीं भी पत्रकार वार्ता करेंगे, तो उनके माइक के पास ही सेंटर-फ़्रेश का पैकेट रखा जायेगा (वह एक बयान देंगे, दो गोली खायेंगे), तथा हॉल में मौजूद प्रत्येक पत्रकार को एक-एक “एम्बीप्योर स्प्रे” का पाउच दिया जायेगा। जैसे ही दिग्गी राजा प्रेस कान्फ़्रेन्स शुरु करेंगे, कम्पनी के प्रतिनिधि पूरे हॉल में एम्बीप्योर की 3 लीटर वाली बोतल से छिड़काव करेंगे…। हम चाहते हैं कि दिग्विजय सिंह कश्मीर से कन्याकुमारी तक कम से कम 300 पत्रकार वार्ताएं करें और हिन्दुओं के खिलाफ़ बदबू फ़ैलाएं, ताकि यह बदबू हॉल से बाहर निकलकर अखबारों के जरिये, लाखों कारों और बसों और ट्रेनों में फ़ैल जाये… फ़िर एम्बीप्योर को परफ़्यूम बाज़ार पर कब्जा जमाते देर नहीं लगेगी…

विशेष संवाददाता से यह भी ज्ञात हुआ है कि कई अन्य विज्ञापन कम्पनियाँ भी कांग्रेस के विभिन्न नेताओं से बहुत प्रभावित हैं। जिस प्रकार बिनानी सीमेण्ट वाले भूकम्प का डर दिखाकर धंधा कर रहे हैं, उसी प्रकार जेपी सीमेण्ट वालों ने अशोक चव्हाण को ब्राण्ड एम्बेसेडर बनाने का फ़ैसला किया है। जेपी कम्पनी के विज्ञापन प्रमुख डॉ चट्टान सिंह हटेला ने कहा कि हम अपने सीमेण्ट की बोरियों पर एक तरफ़ अशोक चव्हाण का व दूसरी तरफ़ आदर्श सोसायटी की विशाल इमारत का चित्र छापेंगे… चूंकि सभी लोग जानते हैं कि 5-7 मंजिला बिल्डिंग की अनुमति के बावजूद यह इमारत 23 मंजिल बन गई… तो ऐसे में सीमेण्ट की मजबूती तो अपने-आप स्थापित होती है… ऊपर से अशोक चव्हाण का चित्र भी रहेगा तो ग्राहक को सन्तुष्टि और विश्वास भी रहेगा…।


उधर चेन्नै में जूता कम्पनी अदिदास के श्री चरणदास मारन ने भी माना कि हाल ही में सम्पन्न कम्पनी की बोर्ड मीटिंग में सुरेश कलमाडी को ब्राण्ड एम्बेसेडर बनाने पर गम्भीरतापूर्वक विचार हुआ। चूंकि “कलमाडी और खेल सामान” की छवि आपस में खासी गुँथ चुकी है, ऐसी स्थिति में हम साइना नेहवाल जैसी नई लड़की को जूतों का ब्राण्ड एम्बेसेडर कैसे बना सकते हैं। चरणदास जी ने आगे बताया कि हम अपने ग्राहकों को यह विशेष छूट भी प्रदान करेंगे कि अदिदास कम्पनी का जूता पहनने वाले व्यक्ति, यदि कलमाडी पर अदिदास का ही नया-पुराना कोई भी जूता फ़ेंकते हैं तो उनके पूरे परिवार को एक-एक जोड़ी जूते मुफ़्त दिये जायेंगे, चाहे वह निशाने पर लगे या न लगे, यानी ग्राहकों का दोहरा फ़ायदा होगा, “आम के आम, गुठलियों के दाम”… हालांकि कलमाडी को ब्राण्ड एम्बेसेडर बनाने के लिये अदिदास के साथ फ़ेविकोल कम्पनी की भी खींचतान चल रही है, फ़ेविकोल कम्पनी के मार्केटिंग मैनेजर ने विज्ञप्ति जारी करके कहा है कि चूंकि कलमाडी इतने विवादों, छापों के बावजूद अपनी कुर्सी से चिपके हुए हैं, अतः फ़ेविकोल के लिये उनसे बेहतर ब्राण्ड एम्बेसेडर नहीं मिलेगा… अब यह देखना रोचक होगा कि अदिदास या फ़ेविकोल में से किस कम्पनी से कलमाडी की सेटिंग सही बैठती है।



फ़िलहाल पुख्ता सूचना सिर्फ़ दिग्विजय सिंह के बारे में ही प्राप्त हुई है, यूपीए सरकार के अन्य मंत्रियों की विभिन्न कम्पनियों से बातचीत चल रही है। शरद पवार को चूंकि अब पैसों का कोई मोह नहीं रह गया है इसलिये उन्होंने इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के आग्रह पर समाजसेवा का निर्णय लिया है, शरद पवार जल्दी ही “आओ मिलकर डायबिटीज़ रोकें…” वाले जनसेवी विज्ञापन में नज़र आयेंगे। एसोसियेशन ने कहा है कि शकर के भावों और शुगर लॉबी से पवार के “मीठे सम्बन्धों” को देखते हुए आम जनता को डायबिटीज़ के प्रति जागरुक करने में यह विज्ञापन अहम भूमिका निभायेगा। वहीं गले की खराश मिटाकर आवाज़ खोलने वाली गोली “विक्स हॉल्स” की ममता बैनर्जी को विज्ञापन में लेने की योजना है, ताकि वे अपनी सभाओं में चिल्लाते समय उन गोलियों का उपयोग करें। जबकि ए राजा भले ही मंत्रिमण्डल से बाहर कर दिये गये हों, विज्ञापन कम्पनियों के मार्केट में उनकी जबरदस्त माँग बनी हुई है, टाटा, वोडाफ़ोन एवं रिलायंस कम्युनिकेशन्स में उन्हें अपना ब्राण्ड एम्बेसेडर बनाने की होड़ लगी है, खबर है कि टाटा व अम्बानी के बीच समझौता हो गया है, कि रतनलाल टाटा, ए राजा को जबकि अम्बानी, नीरा राडिया को अपना ब्राण्ड एम्बेसेडर बनायेंगे।

तात्पर्य यह है कि आने वाले समय में यदि आपको टीवी के परदे पर धोनी, तेण्डुलकर, शाहरुख, अमिताभ की बजाय “सच्चे जनसेवक” दिखाई दें तो चौंकियेगा नहीं… यह विज्ञापन कम्पनियों की नई मार्केटिंग रणनीति है… जो बहुत “मारक” सिद्ध होगी।


चलते-चलते – एक ब्रेकिंग न्यूज़ अभी-अभी प्राप्त हुई है कि भारतीय लोककला संस्कृति बोर्ड ने सोनिया गाँधी को अपना ब्राण्ड एम्बेसेडर नियुक्त कर दिया है… वे भारत के ग्रामीण इलाकों में “कठपुतली कला” को लुप्त होने से बचाने के लिये कैम्पेन करेंगी। चुनाव आयोग, सीवीसी, प्रधानमंत्री व राष्ट्रपति जैसी चार-चार कठपुतलियों को एक साथ साधने की उनकी विशेष दक्षता को देखते हुए इस महान लोककला के पुनर्जीवित होने एवं इसका भविष्य उज्जवल होने की प्रचुर सम्भावनाएं हैं।

उन सभी गुलामों को अंग्रेजी नववर्ष की शुभकामनाएं… जो नये वर्ष में भी न “राजा” से मुक्ति चाहते हैं, न ही “रानी” से…

Monday, October 25, 2010

एक ऐसा सवाल जिसका शायद किसी से पास जवाब नहीं: क्या आपके पास है?

जी हाँ , आज आपके सामी एक ऐसा ही सवाल रखना चाहता हूँ।
हम सब अपनी रोजमर्रा की ज़िन्दगी मैं बस मैं सफ़र करते है । पर आज मैं २ घंटे तक एक बस का इंतज़ार करता रहा। बस स्टाप पर बैठे बैठे मैने देखा कि उतारने वाली सवारियों मैं जो महिलाएं थीं वो सभी उतरते ही अपना पीठ बस की दिशा गति से बिलकुल उलटी दिशा मैं करते हुए उतर रही थीं। एक नहीं बल्कि प्रत्येक महिला ऐसा कर रही थी।

सवाल सिर्फ इतना सा है कि महिलाएं बस से उल्टे क्यूँ उतरती हैं?

क्या है किसी के पास इसका जवाब ?

Thursday, October 14, 2010

मैं आम आदमी हूँ , चुप नहीं बैठूँगा.

लेखन ही मेरी आवाज है. मैं खुद को ऐसे ही अभिव्यक्त करता हूँ. कुछ भी अजीब और असहज घटता है मेरे आस-पास तो मैं चुप नहीं रह पता. कोई ख़ुशी उत्पन्न होती है मेरे आस-पास तो मैं उसे सब लोगों के साथ बांटना चाहता हूँ. याफिर समाज विरोधी लोक-अहित करने वालों को देखता हूँ तो असहज होकर कुछ करने का मन करता है. तो फिर लिखता हूँ. अपने लिए देश के लिए.

खेलों मैं जिस प्रकार गंदे खेल खेले गए यह जग ज़ाहिर है. अब जबकि राष्ट्रमंडल खेलों का भव्य समापन हो चूका है तो अंतर्मन से आवाज़ आती है कि क्या आयोजन से जुडे लोगों के घिनोने खेल का भी समापन होगा?? क्या जिम्मेदारियां तय की जायेंगी, जो लोग दोषी पाए जायेंगे क्या उनपर कोई कानूनी कार्रवाई हो पायेगी. या धन बल और राजबाल के सहारे या फिर अपने रसूखों के बल पर दोषी अधिकारी बच निकालने मैं सफल हो जायेंगे. क्या जवाबदेही तय की जा पायेगी?

कहीं ऐसा तो नहीं होगा कि बारात की विदाई के साथ ही सब कुछ विदा कर दिया जायेगा. सब कुछ भुला दिया जायेगा... फिर से दोहराने के लिए. हम एक और मौका तो नहीं देंगे?

आखिर कौन देगा इन प्रश्नों के उत्तर? जनता? सभ्य समाज? नेतागण? सरकारी तंत्र? या राजनैतिक दल. हम किससे उम्मीद कर सकते हैं? किसी से नहीं क्यूंकि सभी अपनी दबी पूंछ निकालने मैं लगे हैं. क्यूंकि इस हमाम मैं सभी नंगे हैं. कोई किसी पर कीचड नहीं उछाल सकता. सबको सबकी पोल पट्टी मालूम हैं. कोई भी किसी के खिलाफ अपना मूंह नहीं खोलेगा... सच तो यही है.पर मुझे पीड़ा होती है. समाज की खून पसीने कि गढ़ी कमी का मामला है भाई. मैं चुप नहीं बैठूँगा. मैं कुछ नहीं कर सकता जानता हूँ. एक आम आदमी आवाज उठाने के सिवाय कर भी क्या सकता है? उसकी आवाज़ तो होती ही है दबा दिए जाने के लिए. पर मैं चुप नहीं बैठने वाला. मैं लिखूंगा. लिखता रहूँगा.

अब शुरू होंगे खेल, आरोप -प्रत्यारोप का खेल, राजनैतिक खींचतान

खेलों का शुभ समापन, और घोटाले छिपाने का खेल शुरू... हो गया. भारत की साख बच गयी है. सब लोग खुश हैं. सोने के तमगों की गिनती भी बढ़ गयी है. खेलों मैं कई नए कीर्तिमान बने, कई पूर्व कीर्तिमान टूटे हैं. खेल शुरू हनी से पहले भी बहुत से कीर्तिमान हमारे आयोजन कर्ताओं ने बनाए. वो सारे कीर्तिमान ऐसे हैं जो सिर्फ वे ही बना सकते थे.आयोजन से जुडे सब लोग राहत की सांस ले रहे हैं. अच्छी बात है, पर इससे भी अच्छी बात तब होगी जब इनसब लोगों के काले कारनामे भी उजागर होंगे. और दोषी लोगों को दण्डित करने की कार्रवाही ईमानदारी से होगी. जिसकी आशा मुझे और इस देश कि जनता को कतई नहीं है.

असल खेल तो अब शुरू होंगे. लुका छिपी के खेल, आरोप -प्रत्यारोप का खेल, राजनैतिक खींचतान का खेल. कानून को तोडने मरोड़ने का खेल, और भी न जाने कौन कौन से खेल ईजाद कर लिए जायेंगे. जो लोग इन खेलों मैं जीतेंगे वो सम्मानित कीये जायेंगे या नहीं, उन्हें भी कोई तमगा मिलेगा या नहीं, उनका नाम भी खर्ब्रों मैं होगा या नहीं, यह सब तो समय के गर्भ मैं ही छिपा है और रहेगा.

सफल आयोजन की ख़ुशी के तले कहीं उन सबके काले कारनामे भी हमेश की तरह दब कर ना रह जाएँ. हमें और सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए. नहीं तो भ्रष्टाचार के माहिर लोगों को बल मिलेगा और माहौल बद से बदतर होता जायेगा.

मेरी भारत के देशवासियों से अपील है कि इस मामले को इस तरह से दबाया न जाने दें. यही इस समय राष्ट्र की सबसे बड़ी मांग है. जय हिंद. जय भारत.

Thursday, September 23, 2010

मैं हत्या करना चाहता हूँ.

मैं हत्या करना चाहता हूँ.

मैं पहले तो आत्महत्या करने जा रहा था. फिर सोचा कि बेकार मैं मर कर क्या करूंगा. क्यूँ न उस बात को ही चरितार्थ कर दूं कि " हम तो डूबेंगे सनम तुमको भी ले डूबेंगे. सोचा इतने भ्रष्ट लोग हैं, भ्रष्ट नेतागण हैं, भ्रष्ट अफसर लोग हैं, और नए नए भ्रष्ट हैं जिन्होंने खेलों मैं खेल खेला है. क्यूँ न इन सबकी हत्या कर दी जाए.

सच कहूं तो मुझे बहुत गुस्सा है कि इतने लोग भ्रष्ट हैं कि रोटी तक खाना मुहाल हो गया है. पर मैं हूँ तो आम आदमी ही. तो कोई विचार नहीं बना प् रहा हूँ कि इन सब कलंकित लोगों के कैसे मारूं. क्या पाठक गण मेरी इतनी सहायता कर सकते हैं कि देख को साफ़ सुथरा करने के लिए चरों तरफ फ़ैल गयी गंदगी को मैं कैसे हटाऊं. खरपतवार कि तरह उग आये ये भ्रष्ट लोग देख को खोखला कर रहे हैं. एक किसान ही जानता है कि इससे कैसे निबटा जायेगा. और भारत एक कृषि प्रधान देश है. और हम पता है कि इस मुश्किल का क्या हल है.

मार डालो सबको जो भी देश के प्रति बेईमान हो. जो भी अपने कर्तव्य पालन मैं पक्का न हो चाहे वो मेरा बाप ही क्यों न हो. बस एक ही समाधान. ऐसे ज़हरीले पेड़ को उखाड़ फेंको. जय हिंद. जय भारत. जय धर्मनिरपेक्ष भारत. हम एक हैं हम धर्म के नाम पर नहीं टूटने वाले.

जमना मैया कि कहानी, जमना मैया कि जुबानी,

जमना मैया कि कहानी, जमना मैया कि जुबानी,
कभी मरते थे बे-पानी अब है जगह-जगह पर पानी,

करते रहे सभी मन मानी, किसी की कही कभी न मानी,
अब फिर गया है सब पर पानी,
कचरा डाला, कूड़ा डाला, भर भर डाला गन्दा पानी,
करदिया सारा गन्दा पानी, प्रकृति से जो की बेईमानी,
पड़ गया सब पर अब है पानी.

छाती पर हैं खेल बनाये, खेलों मैं भी खेल बनाये.
अब सबका खेल बिगाड़े पानी, हो गया सबकुछ पानी पानी,
पैसा बेह्गाया जैसे पानी, फिर भी देखो वही कहानी,
चारों ओर है पानी पानी.

जमना मैया कि कहानी, जमना मैया कि जुबानी,
कभी मरते थे बे-पानी अब है जगह-जगह पर पानी,

Tuesday, February 23, 2010

क्या भारतीय हाकी टीम को बैसाखियो की जरूरत है?

आज कल हम सब टी.वी पर कुछ विग्यापन देख रहे है जिसमे हाकी वर्ल्ड कप को समर्थन करते हुये कुछ खिलाडियो को दिखाया जा रहा है. यह देख कर खुशी हुई कि हमारी लडखडाती हुई हाकी टीम को प्रोत्साहित करने मे जो अनदेखी लम्बे समय से हो रही थी अब उसकी ओर कम से कम मीडिया का ध्यान जा तो रहा है. मगर एक बात मेरे गले नही उतर रही और शायद मेरे जैसे कितने ही लोग होगे जिनको यह बात असमंजस मे डालती होगी कि भारतीय हाकी के खेल को जो लोग बढावा देने की बात करते दिख रहे है वो फिल्मी सितारे है जैसे प्रियांका चोपडा जी, अभिषेक बच्चन जी है और तो और क्रिकेट जगत के धुरन्धर खिलाडी जैसे वीरेन्द्र सहवाग भी हाकी जैसी लडखडाती टीम का साहस बढाते दिखाई दे रहे है. इतना सारा प्रोत्साहन देखकर अच्छा लगता है. मगर फिर एक बात मेरे मन को शंका से भर देती है कि ये प्रोत्साहन कार्यक्रम कही हाकी को बैसाखी के रूप मे तो प्राप्त नही हो रहे?? क्योकि इन चेहरो मे किसी हाकी खिलाडी का चेहरा तो दिखाई ही नही दे रहा !!! भारत की भोली जनता तो उनके हाकी खिलाडियो को देखने के लिये मैच की टिकट ही लेनी होगी क्या ??? कितना अच्छा होता अगर इन प्रोत्साहन कार्यक्र्मो मे किसी हाकी खिलाडी को भी फिल्माया गया होता. क्योकि ये कार्यक्र्म भारतीय हाकी को बैसाखी की तरह दिये गये है कि जैसे भारतीय हाकी खिलाडियो का कोई अस्तित्व ही नही है या फिर उनमे आत्मबल की कभी है??एक भारतीय होने के नाते मेरा यह विचार है कि हाकी टीम के खिलाडियो को भी मीडिया जगत मौका दे, समर्थन दे उन्हे सीधे तौर पर भारतीय जन-मानस तक पहुचाये . तभी तो हम सीधे सीधे अपने खिलाडियो से जुड पायेगे. आपका क्या कहना है???
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