मासूम मुहब्बत का इतना सा फ़साना है
कागज की कश्ती है बारिश का ज़माना है
क्या शर्ते मुहब्बत है क्या शर्ते ज़माना है
आवाज़ भी ज़ख्मी है और गीत भी गाना है उस पार उतरने की उम्मीद बहुत कम है
कश्ती भी पुराणी है और तूफान को भी आना है
वो समझे न समझे अंदाज़ मुहब्बत के
एक इन्सान को आँखों से शेर सुनना है
भीगी सी अदा इश्क का अंदाज़ पुराना है
फिर आग का दरिया है फिर डूब के जाना है
Monday, February 2, 2009
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मनु जी ग़ज़ल के दूसरे शेर में तर्क-ऐ-मुहब्बत .... होना चाहिए वैसे बहुत दिन हुए याद नहीं है मुझे भी।
ReplyDeletewah bahut khub
ReplyDeletemuhabbat main door nahi jaan btaya hai
ReplyDeletebalki muhabbat ki sharton ka zikar kiya gya hai mainu duvara