Thursday, January 15, 2009

जन जन की पीड़ा, मेरी पीड़ा

भारत एक लोकतांत्रिक धर्मनिर्पेक्ष गणतंत्र है और मुझे देश से इस तरह प्रेम है जैसे अपने घनिष्ठ मित्र से होता है. जब भी कभी भारतवर्ष पर, भारत के निवासियॉ के साथ कोइ एसी घटना होती है जो अन्यायपूर्ण हो, अत्याचार हो, बिला वजह किसी निर्दोष को निशाना बनाया जाता हो तो मन मॅ इक पीड़ा सी उभरती है. वह पीड़ा मै कभी किसी से कह नही सका था. बुरा लगता है जब किसी और के साथ ग़लत हो रहा होता है. केवल मुझे ही नही हम सभी को बुरा लगता है. फिर क्यॉ उस भाव की अभिव्यक्ति नही हो पाती है. क्या है जो रकता है उस बात का विरोध करने से जिसे किसी भी तरह देख लो वो बुरा ही है, वो ग़लत ही है. फिर एक दिन तय किया कि कभी ना कभी कुछ ना कुछ ऐसा अवश्य करके रहूँगा जिससे समग्र भारत का मनोबल दृढ होगा. मै आप सभी पाठक गण से प्रार्थना करता हूँ कि मेरे इस विचार से मिलते जुलते अनुभव अगर आपके भी हॉ तो अवश्य लिखॅ.और इस मुनादी को और ऊची आवाज़ मॅ बजाने मॅ सहयोगी बनॅ.

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